महाभियोग क्या है... महाभियोग एक न्यायिककल्प प्रक्रिया है जो संसद में कुछ विशेष पदों पर आसीन व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश आदि हैं। महाभियोग का प्रस्ताव कैसे तैयार किया जाता है... जिस पदाधिकारी के खिलाफ कदाचार यानी संविधान के उल्लंघन का आरोप होता है - उसके खिलाफ संकल्प वाले प्रस्ताव में कम से कम उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। -उस सदन की कुल सदस्य संख्या के दो तिहाई बहुमत द्वारा वह संकल्प पारित कर दिया जाना चाहिए। महाभियोग प्रस्ताव दूसरे सदन में जाने की प्रक्रिया उपरोक्त प्रकिया से संपन्न उस संविधान के उल्लंघन के आरोप वाले संकल्प को वह सदन दूसरे सदन में पेश करेगा यानि जाँच के लिए भेजेगा। यानी लोकसभा में आरोप लगे तो राज्यसभा में और अगर राज्यसभा में आरोप लगे तो वह लोकसभा में ले जाएगा। दूसरे सदन की प्रतिक्रिया... पहले सदन में लगे आरोपों पर दूसरा सदन भी अपने यहां अन्वेषण करेगा या कराएगा। इस प्रकिया में अगर यह सिद्ध हो गया कि संविधान का उल्लंघन किया गया है, और उसे दूसरे सदन द्वारा भी कम से कम दो तिहाई बहुमत से पारित कर दिया गया तो संकल्प के पारित होने की तिथि से वह पदाधिकारी अपने पद पर नहीं रह सकेगा। पदाधिकारी को पक्ष रखने का अधिकार... आरोपों के अन्वेषण यानी जांच के दौरान उस पदाधिकारी को भी उपस्थित होने, अपना पक्ष रखने या रखवाने का अधिकार होगा। हालांकि अंतिम फैसला सदन के हाथों में होगा। उपरोक्त प्रकिया का संविधान में उल्लेख... प्रावधान :भारत के संविधान में अनुच्छेद 56 के अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया ही राष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रयुक्त की जा सकती है। अनुच्छेद 61 के अनुसार राष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग चलाने का आधार सिर्फ एक ही हो सकता है, वह है संविधान का अतिक्रमण। न्यायधीशों पर महाभियोग का उल्लेख... न्यायधीशों पर महाभियोग का उल्लेख अनुच्छेद 124(4) में मिलता है। इसके तहत सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश पर साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है