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उत्तर वैदिक अर्थ व्यवस्था । Later Vedic Economy

Filed under: History Vedic Period on 2021-06-25 15:19:33
# प्राचीन वैदिक आर्य लोग पशुपालक थे। पशु पालन उनका मुख्य व्यवसाय था। वे दूध मांस और चमड़ा प्राप्त करने के लिए गाय भैंस भेड़ बकरियां और घोड़े पालते थे। 

# लगभग 1000 ईसा पूर्व में लोहे के साक्ष्य कर्नाटक के धारवाड़ जिले से मिले हैं।

# मृतकों के साथ कब्रों में गाड़े गए लोहे के औजार अत्यधिक मात्रा में खुदाई से निकले हैं।

# इसी काल में पूर्वी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में लोहे का प्रयोग किया गया है उत्तर वैदिक ग्रंथों में लोहा धातु को श्याम या कृष्ण अयस कहा गया है।

# उत्तर वैदिक काल में कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय बन गया था। यह लोग खेती की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ करते थे। इसमें यह भी कहा गया है कि हल चलाने के लिए 6 से 8 जोड़ी बैल उपयोग में लाए जाते थे। 

# लोहे के कृषि औजार कम पाए गए हैं। वैदिक ग्रंथों में 6, 8 , 12 और 24 तक की संख्या में बैलों को हल में जोते जाने की चर्चा है। जुताई लकड़ी के फाल वाले हल से होती थी।

# शतपथ ब्राह्मण में हल संबंधी अनुष्ठान का लंबा वर्णन है। कृष्ण का भाई बलराम हलधर कहलाता था क्योंकि उसका हल उसका अस्त्र था। 

# वैदिक काल के लोग जो उपर जाते थे, परंतु इस काल में चावल और गेहूं की मुख्य फसल हो गई। वैदिक काल में लोगों का चावल से परिचय सबसे पहले डोआब में हुआ। वैदिक ग्रंथों में इसका नाम ब्रिही मिलता है।

# उत्तर वैदिक काल के लोग अनेक प्रकार की तिलहन फसल पैदा करते थे। 

# 1500 ईसा पूर्व के तांबे के अत्यधिक औजार के जखीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिहार में मिले हैं। वैदिक लोग संभवत राजस्थान के खेतड़ी की तांबे की खानों का उपयोग करते थे। 

# ताबे की वस्तुएं चित्रित धूसर मृदभांड स्थलों में पाई गई हैं बुनाई केवल स्त्रियां करती थी किंतु यह काम बड़े पैमाने पर होता था। 

# शतपथ ब्राह्मण में महाजनी प्रथा का पहली बार जिक्र हुआ है तथा सूदखोर को कुसिदिन कहा गया है।

# खेती और विभिन्न शिल्पों की सहायता से उत्तर वैदिक काल के लोग स्थाई जीवन अपनाने में समर्थ हो गए। 

# लोग कच्ची ईट और लकड़ी के खंभों पर टिकी मिट्टी के घरों में रहते थे

# चूल्हा और अनाजों से प्रतीत होता है कि चित्रित धूसर मृदभांड काल के लोग उत्तर वैदिक लोग ही थे यह कृषि जीबी और स्थिर वासी थे।

# सिक्कों का प्रचलन निष्क, शतमान, कृष्णवत, वृष्ण्वल के रूप में होता था।
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