1800 ई. में मराठा कूटनीतिज्ञ नाना फड़नवीस की मृत्यु हो जाने पर मराठों में ऐसा कोई प्रभावशाली प्रतिभा संपन्न नेता नहीं था, जो मराठा शासकों - गायकवाड़, होल्कर, सिंधिया और भौंसले को एक सूत्र में बाँधकर संगठित रख सकता। परिणामस्वरूप पूना में पेशवा का दरबार कुचक्रों और शड़यत्रों का केन्द्र हो गया। पेशवा बाजीराव ने होल्कर यशवतं राव के बंधु बिठूजी की हत्या कर दी। इससे रूश्ट होकर होल्कर ने पूना पर आक्रमण किया और पेशवा और सिंधिया दोनों की सम्मिलित सेनाओं को 25 अक्टूबर 1802 ई. को परास्त कर दिया और रघुनाथराव द्वारा गादे लिये गये लड़के अमृतराव के प़ुत्र विनायकराव को पूना में पेशवा बना दिया। ऐसी परिस्थितियों में पेशवा बेसिन से पलायन कर अंग्रेजों की शरण में चला गया और उसने गवर्नर-जनरल वेलेजली से सैनिक सहायता की याचना की। वेलेजली ने मराठों के मामलों में हस्तक्षपे का यह सुअवसर देखकर 31 दिसम्बर 1802 ईको पेशवा के साथ सहायक संधि कर ली जो बेसिन की संधि कहलाती है।