# बिजली वाले बादल धरातल से 1-2 किलोमीटर की दूरी के भीतर होते हैं जबकि उनका शीर्ष भाग 12-13 किलोमीटर दूरी पर रहता है. # इन बादलों के शीर्ष पर तापमान -35 से लेकर -45 डिग्री सेल्सियस होता है. # इन बादलों में जैसे-जैसे जलवाष्प ऊपर जाता है, गिरते हुए तापमान के कारण वह संघनित होने लगता है. इस प्रक्रिया में ताप उत्पन्न होता है जो जलकणों को और ऊपर की ओर धकेलने लगता है. # जब जलवाष्प शून्य डिग्री सेल्सियस तापमान पर पहुँच जाता है तो उसकी बूँदें छोटे-छोटे बर्फीले रवों में बदल जाती हैं. जब वे ऊपर जाती हैं तो उनका आयतन बढ़ते-बढ़ते इतना अधिक हो जाता है कि ये बूँदें पृथ्वी पर गिरने लगती हैं. # इस प्रक्रिया में एक समय ऐसी दशा हो जाती है कि छोटे-छोटे हिम के बर्फीले रवे ऊपर जा रहे होते हैं और बड़े-बड़े रवे नीचे की ओर आते रहते हैं. # इस आवाजाही में बड़े और छोटे रवे टकराने लगते हैं जिससे इलेक्ट्रान छूटने लगते हैं. इन इलेक्ट्रानों के कारण रवों का टकराव बढ़ जाता है और पहले से अधिक इलेक्ट्रान उत्पन्न होने लगते हैं. # अंततः बादल की शीर्ष परत में धनात्मक आवेश आ जाता है जबकि बीच वाली परत में ऋणात्मक आवेश उत्पन्न हो जाता है. # बादल की दो परतों के बीच विद्युतीय क्षमता में जो अंतर होता है वह 1 बिलियन से लेकर 10 बिलियन वाल्ट तक की शक्ति रखता है. बहुत थोड़े समय में ही एक लाख से लेकर दस लाख एम्पीयर की विद्युत धारा इन दोनों परतों के बीच प्रवहमान होने लगती हैं. # इस विद्युत धारा के फलस्वरूप भयंकर ताप उत्पन्न होता है जिसके कारण बादल की दोनों परतों के बीच का वायु-स्तम्भ गरम हो जाता है. इस गर्मी से यह वायु-स्तम्भ लाल रंग हो जाता है. जब यह वायु-स्तम्भ फैलता है तो बादल के अंदर भयंकर गड़गड़ाहट होती है जिसे बिजली कड़कना (thunder) कहते हैं.