You are here: Home / Hindi Web /Topics / अमेरिकी क्रांति (1776 ई.) के कारण

अमेरिकी क्रांति (1776 ई.) के कारण

Filed under: World History on 2021-07-14 10:02:28
1. अमेरिकी उपनिवेशों का विद्राहे व तत्जनित अमेरिकी स्वतंत्रा-युद्ध उन परिस्थितियों का परिणाम था जो सप्तवर्षीय युद्ध के कारण उपस्थित हुई। 1763 ई. में सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति होने पर इंग्लैण्ड एक विस्तृत औपनिवेिशक साम्राज्य का अधिपति था। अमेरिका के 13 उपनिवेशों में अंग्रेजों की प्रधानता थी व वहाँ इंग्लैण्ड जैसी राजनीतिक संस्थाएँ व परंपराएँ प्रचलित थीं। अठारहवीं सदी के मध्य तक, इंग्लैण्ड की भाँति ही, अमेरिकी उपनिवेशों में अनुकूल वातावरण होने के कारण उपनिवेश वालों ने इंग्लैण्ड की अपेक्षा काफी महत्वपूर्ण व पग्रतिशील प्रयागे किये। अमेरिकी उपनिवेशों में क्रांतिकारी राजनीतिक प्रयोग व परिवर्तन इसलिए संभव हो सके क्योंकि अमेरिका में बहुसंख्यक प्यूरिटन होने से धार्मिक स्थिति अनुकूल थी; अमेरिका की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति भी बड़ी सहायक सिद्ध हुई व भौगोलिक परिस्थितियों ने भी राजनीतिक परिवर्तनों में काफी योगदान दिया। 

इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा सुदूरस्थ अमेरिकी उपनिवेशों पर नियंत्रण स्थापित करना सरल न था। इंग्लैण्ड की सरकार अमेरिकी उपनिवेशों के व्यापार-वाणिज्य के प्रति हस्तक्षेप और नियंत्रण की नीति इस उद्देश्य से अपनाती थी कि इंग्लैण्ड के आर्थिक, औद्योगिक व व्यापारिक हितों की वृद्धि हो सके। यद्यपि इंग्लैण्ड की सरकार की नीति अमेरिकी हितों के प्रतिकूल थी, परंतु कई कारणों से अमेरिकी उपनिवेशों ने काफी समय तक इसे सहन किया क्योंकि काफी समय तक इंग्लैण्ड के नियंत्रण की नीति को पूर्ण रूप से कार्यान्वित नहीं किया गया; संभावित फ्रांसीसी आक्रमण के विरूद्ध इंग्लैण्ड की सहायता प्राप्त होने के कारण अमेरिकी उपनिवेशों ने आर्थिक नियंत्रण को सहन किया व काफी समय तक अमेरिकी उपनिवेश अशक्त होने के कारण इंग्लैण्ड के आश्रित रहे। 

किन्तु सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति होने पर 1763 ई. की पेरिस की संधि से अमेरिकी परिस्थितियाँ पूर्णतया बदल गयीं। अब अमेरिकी उपनिवेशों को फ्रासं ीसियों की ओर से काइेर् भय न रहा। अत: उन्हें गृह-सरकार पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं रह गयी। सप्तवर्षीय युद्ध के काल में अमेरिकी उपनिवेश न केवल धन संपnn व लोकसंख्या में भी संपन्न हो गये थे, वरन् वे काफी आत्म-निर्भर भी हो गये थे। अत: अब उनहें गृह-सरकार का नियंत्रण असह्य हो गया।

2. 1763 ई. में जॉर्ज ग्रेनविल ने जिस मंत्रिमण्डल की रचना की, उसके विचारानुसार अमेरिकी उपनिवेशों को गत युद्ध के आर्थिक बाझे व राष्ट्रीय सुरक्षा के दायित्व के भार अपने ऊपर लेना थे क्योंकि इंग्लैण्ड ने फ्रासीसी आक्रमणों के विरूद्ध अमेरिकी उपनिवेशों की रक्षा की थी, अत: अमेरिकी उपनिवेशों पर नये कर लगाये जाने चाहिए और इस प्रकार इंग्लैण्ड की भयंकर आर्थिक समस्या का समाधान होना चाहिए। अत: इंग्लैण्ड के रिक्त कोष की पूर्ति व आर्थिक संकट का सामना करने के उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने दो महत्वपूर्ण एक्ट पास किये। पहला शुगर एक्ट-1764 ई. व दूसरा स्टाम्प एक्ट-1765 ई. था, परंतु शीघ्र ही अमेरिकी उपनिवेशों ने इन दोनो एक्टों के विरूद्ध अपना असंतोष प्रकट किया। उन्होंने वह नारा बुलंद किया कि ‘‘बिना प्रतिनिधित्व के करारोपण अन्याय व अत्याचार हैं’’ व ‘‘बिना प्रतिनिधित्व के करारोपण नहीं हो सकता।’’ क्योंकि स्टाम्प एक्ट ने सभी उपनिवेशों में भयकं र चिनगारी भर दी अत: अमेरिकी लोगों ने ‘अधिकार की घोषणा’ की, जिनसे दंगे आरंभ हो गये तथा ब्रिटिश मालों का बहिष्कार किया गया। अत: विविश होकर 1766 ई. में गृह-सरकार ने स्टाम्प एक्ट को रद्द कर दिया।

3. 1767 ई. में गृह-सरकार ने उपनिवेशों के आयात की कई चीजों पर, जैसे काँच, सीसा, रंग, कागज, चाय, इत्यादि पर चुँगी लगा दी। इससे तुरंत ही अमेरिकी उपनिवेशों में भयंकर विरोध आरंभ हो गये और 1770 ई. में बास्े टन नगर में हत्याकाण्ड हो गया। इन घटनाओं से प्रभावित होकर यद्यपि गृह-सरकार ने अन्य चीजों पर से चुँगी हटा दी, परंतु चार पर चुँगी पूर्ववत् बनी रही। अत: अमेरिकी उपनिवेशों ने क्रोध में आकर बास्े टन के बंदरगाह पर चाय से लदे हुए एक जहाज में प्रविष्ट होकर चाय की पेिटयाँ उठा-उठाकर समुद्र में फेंक दी। यह घटना इतिहास में बोस्टन टी पार्टी के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना के प्रत्युत्तर में 1774 ई. में गृह-सरकार ने पाँच एक्ट पास किये। इनके द्वारा बोस्टन के बंदरगाह को व्यापार के लिए बिल्कुल बंद कर दिया गया और मैसाचुसेट्स की प्रतिनिधि-संस्थायें तोड़ दी गयी। 1774 ई. में ही फिलाडेलफिया में महाद्वीपीय काग्रेस की बठै क हुई व इसने सम्राट जाजॅर् तृतीय के पास अपना आवेदन भेजा, परंतु इसका कोई फल न हुआ। अब सम्राट जॉर्ज तृतीय, ब्रिटिश संसद व अमेरिकी उपनिवेश अपनी-अपनी नीति पर कटिबद्ध हो गये। अब इंग्लैण्ड तथा अमेरिकी उपनिवेशिकों के बीच समझौते की कोई संभावना नहीं रह गयी। प्रारंभ में करों के विरूद्ध जो विरोध आरंभ हुआ था, अब वह राजनीतिक विप्लव में परिणत हो गया।

4. इंग्लैण्ड की दमन-नीति से तंग आकर 1779 ई. की 4 जुलाई के दिन अमेरिकी कांग्रेस ने बड़ी क्रांतिकारी कायर्व ाही आरंभ की अर्थात इसने अमेरिकी उपनिवेशों की स्वतंत्रता घोषित कर दी, जिसका अमेरिकी देशभक्तों ने सहर्ष ही स्वागत किया। इंग्लैण्ड में राजा और संसद दोनों ने ही इस स्वतंत्रता की घोषणा की निंदा व विरोधी उपनिवेशिकों को राजद्रोही की संज्ञा प्रदान की।
About Author:
M
Madan     View Profile
Never judge too early.