# 1905 की क्रांति असफल हो चुकी थी लेकिन सुधारवादियों को अभी ड्यूमा से आशा थी। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अपनी रूचि की ड्यूमा चाहती थी। प्रथम ड्यूमा को दो माह बाद भंग कर दिया गया। इसके सदस्यों ने देश से सरकार के प्रति असहयोग की अपील की लेकिन देश आंदोलनों से थक चुका था, अत: इसका प्रभाव नहीं पड़ा। सरकार ने छुटपुट विद्रोह को निर्दयता से कुचल दिया। दूसरी ड्यूमा में भी सरकार विरोधी सदस्यों का बहुमत था। इसे भी भंग कर दिया गया। इसके बाद सरकार ने मताधिकार सीमित करके चुनाव कराये। इससे तीसरी ड्यूमा में सरकार के समर्थकों को बहुमत प्राप्त हो गया। यद्यपि ड्यूमा बनी रही लेकिन वह सरकार से सहयागे करती रही और सरकार की इच्छा के अनुसार चालती रही। क्रांति की असफलता के कारण थे - # रूस का सैनिकतंत्र दुर्बल नहीं हुआ था। यद्यपि सुदूरपूर्व में हार हो गयी थी, पर सेना पूर्ण रूप से पराजित नहीं हुई थी। जब तक वह सुदूरपूर्व में फँसी रही, जार को क्रांतिकारियों की माँगों को स्वीकार करना पड़ा। उसके वापस आते ही जार ने रियासतें वापस ले ली और क्रांति को कुचल डाला। # विभिन्न राजनीतिक दलों के उद्देश्य यों में एकता नहीं थी। अक्टूबरवादी परामर्शदात्री ड्यूमा से संतुष्ट थे। केडेट पार्टी संसदीय प्रणाली चाहती थी। समाजवादी समाज में आमूल परिवर्तन चाहते थे। उद्देश्य एक न हाने े से आदं ोलन में एकता का अभाव हो गया। # विभिन्न वर्ग अपने-अपने हितों के लिए कार्य कर रहे थे। श्रमिक वर्ग औद्योगिक समस्याओं को हल करने की प्राथमिकता दे रहा था। कृषक वर्ग समझता था कि ड्यूमा को इसलिए नियंत्रित किया जा रहा है कि वह भस्ू वामियों की भूमि जब्त करके उनमें बाँट दे। बुद्धिजीवी नागरिक संविधान और नागरिक अधिकारों में रूचि रखते थे। श्रमिकों और कृषकों को इनमें रूचि नहीं थी। # विट की रियासत देने की नीति ने भी आंदोलन को दुर्बल कर दिया। अक्टूबर की घोषणा से केडेट पार्टी में फूट पड़ गयी थी। कृषकों को अनेक रियासतें दी गयी। सामान्य नागरिक, जनता और श्रमिक वर्ग व्यापक मताधिकार से संतुष्ट हो गया था। इससे समाजवादी और आतंकवादी पृथक् रह गये। # क्रांति के दौरान श्रमिकों और कृषकों की हिंसा से मध्यम वर्ग क्रांति से विमुख होने लगा था। मास्को के श्रमिकों में बोल्शेविकों का प्रभाव था जिनका सैनिकों से संघर्ष हुआ। ग्रामों में कृषकों की लूट और हिंसा का भी विरोधी प्रभाव पड़ा। # क्रांति को चलते एक वर्ष से अधिक हो गया था। इससे जनता में उदासीनता आने लगी थी। रूस जैसे विशाल देश में विभिन्न क्षेत्रों के मध्य समन्वय रखना भी कठिन था। अत: जनता अब ड्यूमा की ओर आकर्षित हो गयी थी। # सरकार को विदेशी ऋण मिल जाने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गयी। अब वह ड्यूमा को भंग कर सकती थी और क्रांति को कुचल सकती थी। पोर्ट्समाउथ की संधि में रूस को कोई अपना क्षेत्र जापान को नहीं देना पड़ा था। अत: सरकार को मनोबल ऊँचा था। उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति भी दृढ़ थी। फ्रांस उसका मित्र था और इंग्लैण्ड से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो रहे थे।