गुप्तयुगीन वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरण मंदिर हैं। वस्तुतः मंदिर के अवशेष हमें इसी काल से मिलने लगते हैं। गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर निम्नलिखित हैं
दशावतार मंदिर देवगढ़ (झांसी) विष्णु मंदिर तिगवा (जबलपुर, मध्य प्रदेश) शिव मंदिर खोह (नागौद, मध्य प्रदेश) पार्वती मंदिर नयना कुठार (मध्य प्रदेश) भीतरगाँव मंदिर भीतरगाँव (कानपुर) शिव मंदिर भूमरा (नागौद, मध्य प्रदेश) दशावतार मंदिर
उत्तर प्रदेश के ललितपुर (प्राचीन झांसी) जिले में देवगढ नामक स्थान से यह मंदिर प्राप्त हुआ है।गुप्त काल के सभी मंदिरों में देवगढ का दशावतार मंदिर सर्वाधिक सुंदर है, जिसमें गुप्त मंदिरों की सभी विशेषतायें प्राप्त हो जाती हैं।
विष्णु मंदिर
तिगवा मध्य प्रदेश के कटनी जिले का एक गाँव है जहाँ एक प्राचीन पुरातात्विक स्थल है जिसमें कई हिन्दू मन्दिरों के भग्नावशेष विद्यमान हैं।
पार्वती मंदिर
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अजयगढ के समीप नचना कुठार नामक स्थान पर यह मंदिर प्राप्त होता है। इसका निर्माण वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है। गर्भगृह आठ फुट चौङा है, जिसके चारों ओर ढका हुआ बरामदा है।
भीतरगाँव मंदिर
भीतरगाँव का मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण ईंटों से किया गया है। मंदिर एक वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है।
भूमरा का शिव मंदिर
मध्य प्रदेश के सतना जिले में भूमरा नामक स्थान से पाषाण निर्मित एक गर्भगृह प्राप्त हुआ। इसके प्रवेशद्वार पर गंगा-यमुना की आकृतियाँ बनी हुई हैं। इसके द्वार की चौखट भी अलंगरणों से सजायी गयी हैं।
उपर्युक्त प्रमुख मंदिरों के अलावा राजस्थान के कोटा से मुकुंद दर्रा (कोटा का दर्रा) मंदिर प्राप्त हुआ है, जिसे प्रारंभिक गुप्त मंदिर का प्रमुख उदाहरण माना जा सकता है। इसका निर्माण एक ऊँचे आयताकार चबूतरे पर किया गया है, जिस पर चढने के लिये सीढियाँ बनी हैं। इसका गर्भगृह चार स्तंभों पर टिका है, तथा उसके सम्मुख स्तंभयुक्त मुखमंडप है।
गुप्तकालीन मंदिर ईंट-पत्थर से बने प्राचीनतम संरचनात्मक मंदिर हैं। ये आकार-प्रकार में छोटे हैं। इनमें वर्गाकार गर्भगृह तथा लघु आकार का मंडप मिलता है, जिसमें उपासकों के बैठने के लिये कोई स्थान नहीं था। ये पूर्व मध्यकालीन मंदिरों से भिन्न हैं, जिनमें उत्तुंग शिखर तथा विशाल मंडप बनाये जाते थे। फिर भी देवगढ मंदिर को देखने से ऐसा लगता है, कि शिखर तथा मंडप शैली में संक्रमण प्रारंभ हो चुका था।