मध्य जून (आषाढ़) से मौसम एकाएक बदलने लगता है. आकाश बादलों से घिरने लगता है और दक्षिण-पश्चिमी पवन चलने लगते हैं. ये पवन “दक्षिण-पश्चिमी मानसून” के नाम से प्रसिद्ध हैं क्योंकि मूलतः ये दक्षिण-पश्चिम से शुरू होते हैं. इस मानसून के आते ही तापक्रम में काफी गिरावट आ जाती है, अर्थात् तापक्रम घटने लगता है. मगर वायु में नामी बढ़ जाती है जिससे असह्य ऊमस का अनुभव होता है और बेचैनी असह्य हो उठती है. उस समय यहाँ की हालत विषुवत-रेखीय प्रदेश जैसी हो जाती है मध्य जून से पहली जुलाई तक सारा भारत दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के प्रभाव में आ जाता है. चूँकि उत्तर-पश्चिमी भारत में वायु-भार सबसे कम रहता है, अतः समुद्र की ओर से वाष्प-भरे पवन तेजी से उस ओर चल पड़ते हैं. बिजली की कड़क और चमक के साथ भारी वर्षा होती है. प्रकार:- दक्षिण-पश्चिमी मानसून को दो भागों में बाँटा जा सकता है – अरब सागर का मानसून बंगाल की खाड़ी का मानसून इस विभाजन का कारण भारतीय प्रायद्वीप की प्रकृति है.