# प्रोटोस्टार (PROTOSTAR) का निर्माण प्रारम्भ में, आकाशगंगाओं में मुख्य रूप से हाइड्रोजन के साथ कुछ हीलियम गैस थी। हालांकि, उनका तापमान बहुत कम (-173 °C) था। चूंकि गैस बहुत ठंडी थी, नीहारिका में धूल और गैस के कणों ने एक स्थान पर संघनित होकर सघन बादलों का निर्माण किया। इसके अतिरिक्त, गैस से बने बादल अत्यधिक विशाल थे इसलिए विभिन्न गैस के अणुओं के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल भी अत्यधिक था। # अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण बल के कारण, नीहारिका में सिकुड़न प्रारम्भ हुई और अंत में नीहारिका में इतना संकुचन हुआ कि वे एक अत्यधिक सघन पिंड में बदल गयी जिसे प्रोटोस्टार (Protostar) कहा गया। प्रोटोस्टार दिखने में एक विशाल, काली गैस की गेंद की तरह लगता है। प्रोटोस्टार का निर्माण, तारे के निर्माण में सिर्फ एक चरण है। यह प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करता है। अगले चरण में प्रोटोस्टार का परिवर्तन एक तारे के रूप में होता है जो प्रकाश का उत्सर्जन करता है। प्रोटोस्टार से तारे का निर्माण::: प्रोटोस्टार एक अत्यंत सघन गैसीय पिंड है, जिसमें अधिक गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आगे संकुचन जारी रहता है। आगे ज्योंही प्रोटोस्टार में संकुचन प्रारम्भ होता है, नीहारिका में विद्यमान हाइड्रोजन परमाणु एक दूसरे से टकराने लगते हैं। हाइड्रोजन परमाणुओं की इन टक्करों से प्रोटोस्टार के तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने लगती है। # प्रोटोस्टार के संकुचन की प्रक्रिया लाखों वर्षों तक जारी रहती है, इस दौरान प्रोटोस्टार का आन्तरिक तापमान प्रारम्भिक -173°C से बढ़कर 107°C तक पहुँच जाता है। इस अत्यधिक तापमान पर, हाइड्रोजन की नाभिकीय संलयन अभिक्रिया आरम्भ होती है। इस प्रक्रम में, चार छोटे हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर एक बड़ा हीलियम नाभिक बनाते हैं तथा ताप और प्रकाश के रूप में अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। हाइड्रोजन के संलयन से हीलियम बनने के दौरान उत्पन्न ऊर्जा प्रोटोस्टार को चमक प्रदान करती है और वह तारा बन जाता है। यह तारा बहुत लम्बे समय तक निरंतर चमकता रहता है।