उदय पुर के नाथद्धार जाने वाले मार्ग में पहाड़ियों के मदय में मन मोहक और नयन रम्य स्थल हल्दी घाटी का इतिहास पुरे विश्व में प्रचलित है। उसला दूसरा नाम ‘गोगंदा’ है। इस युद्ध में महाराजा प्रताप और उनकी सेनाने ऐसी वीरता और निडरता से लड़ाई लड़ी थी की पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए थे। भारत के haldighati rajasthan राज्य में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर दूर जल्दी घाटी की जगह उपस्थित है। हल्दी घाटी का युद्ध राणा प्रताप और अकबर बादशाह के बिच हुआ था और अकबर की और से उनके सेना नायक मान सिंह थे और उसके पास 5000 से भी ज्यादा मुग़ल सैनिक थे। जो मजबूत सैन्य बल कहा जाता था। मुगल सैन्य के पास सशस्त्र सेना में तक़रीबन 3000 घुड़सवार शामिल थे। haldighati yudh में शामिल सभी वीर की ताकत बहुत ही अनोखी थी। उनके सामने मेवाड़ दुर्ग के राजा राणा प्रताप के सैन्य की ताकत कुछ भी नहीं थी। दिल्ही सम्राट अकबर के सैन्य का सेना पति मान सिंह था और उसका नेतृत्व भी मान सिंह ही करते थे। दूसरी और तंवरों, ग्वालियर के भिल्स जनजाति और राठोरों मेड़ता की संगठित की हुई सेना से राणा प्रताप ने अपना प्रतिनित्धित्व किया था। महाराणा के पास अफगानिस्तान का विर योद्धाओं का नन्हा समूह था और इसका सेना नायक यानि सेना पति हकीम खान सूर थे। उन मुस्लमान यौद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता की जलक दिखाई थी। इस युद्ध में maharana pratap ने अपना प्रिय घोडा चेतक भी खोया था। महाराणा राणा की सैन्य संख्या 20000 थी और सामने अकबर की सेना में 80,000 सैनिक शामिल थे। अकबर की सेना में हाथी थे। बल्कि राजपूत सैन्य के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं थी 18 जून 1576 ई के दिन लडा गया युद्ध भयंकर युद्ध के रूप में लड़ा गया था। बलीचा और ख़मनोर गांव के बिच से गुजराती नदी बनास के किनारे और उस पहाड़ी पर पे लड़ा गया था haldighati battle पुरे राजपूत वंश की बलिदान की कहानी और इज्जत बन चुकी थी। इस haldighati ka yudh बहुत ही भयंकर परिणाम देने वाला था। उसमे झाला मान सिंह ,हकीमखां सूरी ,ग्वालियर के नरेश राम सिंह तंवर जैसे कई बलवान और देश भक्त सैनिक और सेना नायको को खोदिया था उसमे राणा प्रताप का प्रिय घोडा चेतक भी मारा गया था। आज भी उस जगह पर सभी विरो के स्मारक बने हुए है। इस जगह युद्ध के स्थल की रक्त तलाई ,हल्दी घाटी दरा ,प्रताप गुफा ,चेतक समाधी ,शाही बाग और महाराणा प्रताप का स्मारक बना हुआ है। चार घंटे चले थे युद्ध – इतिहास इक ऐसा जरिया है जिनकी वजह से हमको पता चलता है की हमारे देश या मुल्क में कितने विर और महान राजाओ ने युद्ध लड़ते है वीर गति को स्वीकार किया है। battle of haldighati in hindi की जानकारी के मुताबिक राजपूत और मुघलो दोनों और से कई वीर यौद्धा ने अपना जीवन कुबान कर दिया था। haldighati distance 40 किलो मीटर की बताई जाती है। अरावली पर्वतीय गिरिमाला के बिच बलीचा और खमनोर गांव के पास जो पाली जिले को जोड़ता है। बादशाह अकबर के सामने सिर्फ और सिर्फ महाराणा प्रताप ही ऐसे राजा थे जिन्हो ने मुघलो की पराधीनता का स्वीकार नहीं किया था। अकबर की haldighati ka yudh की लड़ाई के लिए ही मानसिंह और राणा प्रताप की अनबन हु थी। और मानसिंह के भड़काने से ही अकबर ने अपनी भारी सेना को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया था। लेकिन हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूत विरो ने ऐसी वीरता दिखाई की अकबर भी दंग रह गया था। हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई के दिन अकबर और महाराणा प्रताप के बिच लड़ा गया था। उस लड़ाई में राजपूत सैनिक और उनके राजा राणा प्रताप ने अपनी अखुट वीरता और मातृ भूमि के लिए त्याग की भावना दिखाई जिन्हे इतिहास के सुनहरे पन्ने पर अंकित किया गया है। राजपूतो के कई सैनिको ने वीर गति को प्राप्त किया था। अकबर की और से भी जाला मान सिंह भी विर गति को प्राप्त हुए थे। हल्दी घाटी के युद्ध में नहीं अकबर जीता नहीं था महाराणा प्रताप जीते थे लेकिन महाराणा प्रताप और उनके सैन्य ने मुघलो की ऐसी हालत करदी थी की अकबर थक चूका था। अलग अलग होती है कहा जाता है war of haldighati की जंग पुरे चार घंटे चला था जिसमे 80000 मुघल सैनिको के सामने 20000 राजपूत विरो ने मुघलो को rajasthan haldighati से खदेड़ दिया था। राजपूतो ने अपनी मातृ भूमि भारत माता के लिए इतने युद्ध लडे है की लिखते लिखते लिखने वाला भी थक जाये और उनके पन्ने भी कम पड़ जाये। मुघल सैन्य ज्यादा था लेकिन सामने राजपुत सैनिक और उनके सेनापति इतने चालक थे की 80000 सैनिको भी धूल चटाने में कामियाब रहे थे। haldighati war in hindi की पूरी जानकारी देखि जाये तो haldighati ka yudh कैसे लड़ा गया – यह युद्ध 18 जून 1576 ई में तक़रीबन चार घंटे चली थी पुरे युद्ध में राजपूतो ने मुघलो ऐसी टक्कर देदी थी की मुघलो भी शरमाना पड़ा था। बादशाह अकबर खुद उतरा था युद्ध में – हल्दी घाटी पहाड़ से दूर भागती मुग़ल सेना बनास नदी के तट पर आकर के रुक गई थी। क्योकि उनके चालक सेना नायक ने ऐसा सेना को बताया की अकबर सलामत खुद ही यह युद्ध लड़ने के लिए उतरने वाले है। लेकिन राजपूत सैनको की वितको देखते ही मुघल सेना एक सदमे में चली गई थी की कुछ भी करेंगे हम जित नहीं पाएगे जब शाही सेना और राणा की सेनाये समतल मैदान पर जंग लड़ने उतर चुकी थीं राजपूत अपनी जान की कोई परवाह ही नहीं करते थे और एक घास की भाटी मुघलो को काट दिया करते थे। बादशाह सलामत अकबर जी सेना के पैर युद्ध मैदान से राजपूत पूरी तरह उखाड़ चुके थे। सेना पति राम सिंह की परहेज तले युद्ध में लड़ती राजपूत सेना शाही सैन्य को कुचलती ही जाती थी और मुघल अपने कदम पीछे ही हटाये जाते थे यहाँ से गबरा कर सेना ने अपना मुख बदला फिरभी राणा की सेना पीछा छोड़ने वाली नहीं थी। ऐसा कहा जाता था की उस दिन राजपूत सिर्फ और सिर्फ मरने के लिए ही उतरे थे ऐसा प्रतीत होता था कैसे भी करके राजपूत अपनी मातृ भूमि को दूसरे के हाथ नहीं सौपना चाहते थे। राजपूत सेना के सेना नायक राम सिंह ने चतुराई और विरता को देख अकबर सेना पूरी तरह से टूट चुकी थी और सिर्फ हर की ही रह देखे जा रही थी। मुग़ल सैन्य को युद्ध मैदान से भागते हुए देख के एक मुग़ल सेना नायक सूबेदार मिहत्तर खान ने जूठा बोलना शुरू करदिया की बादशाह सलामत अकबर खुद सैनिको और पुरे रसाले के साथ युद्ध मैदान में आ रहे हैं. अबू फज़ल अपने इतिहास में लिखते हैं के एक जूठ ने मुघलो को थोड़ा हौसला बढ़ाया लेकिन राजपूत सिर्फ और सिर्फ मरने के लिए ही उतरे थे ऐसा देख फीस गभरा गए थे। haldighati war in hindi में जो योद्धा जो भी मरते थे सिर्फ राजपूत थे लेकिन फायदा अकबर को होने वाला था क्योकि मानसिंह अकबर की और से युद्ध में उतरे थे इन्ही भूल के कारन ही राजपूतो को बहुत भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था।