मार्च 12, 1930 को महात्मा गाँधी ने गुजरात के अहमदाबाद में स्थित साबरमती आश्रम से ऐतिहासिक नमक यात्रा आरम्भ की थी. यात्रा के अंत में वे दांडी नामक तटीय गाँव में पहुँचे थे और वहाँ ब्रिटिशों द्वारा नमक पर लगाये गये अत्यंत बढ़े हुए कर का विरोध किया था. यह नमक यात्रा मार्च 12, 1930 से लेकर अप्रैल 6, 1930 तक चली. 24 दिनों तक चलने वाली यह यात्रा हिंसारहित रही और इसका यह ऐतिहासिक महत्त्व है कि इसके उपरान्त देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का सूत्रपात हो गया. दांडी के समुद्र तट पर पहुँच कर महात्मा गाँधी ने अवैध रूप से नमक बनाकर क़ानून अवहेलना की. इनके देखा-देखी पूरे भारत में लाखों लोगों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन किया जिसमें नमक बनाकर अथवा अवैध नमक खरीद कर नमक कानूनों को तोड़ा गया. ऐतिहासिक भूमिका उस समय ब्रिटिशों ने भारतीयों को नमक बनाने और बेचने से मना कर दिया था. यही नहीं, भारतीयों को नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थ को ब्रिटिशों से खरीदने के लिए विवश कर दिया था. इस प्रकार जहाँ ब्रिटिशों को नमक बनाने और बेचने का एकाधिकार प्राप्त हो गया था, वहीं वे भारी नमक कर भी लगा रहे थे. नमक यात्रा ब्रिटिशों के इस अत्याचार के विरुद्ध एक जन-आन्दोलन में बदल गया.