भारतवर्ष का इतिहास बहुत प्राचीन है. प्राचीन काल में अनेक राजाओ ने भारत पर शासन किया है. तथा उन्होंने अनेक कार्य और इमारतो का निर्माण कराया था. उनके सफलतम शासन के कारन ही भारत विश्व गुरु बन पाया. इस आर्टिकल में हम ऐसे ही महान हिन्दू चोल साम्राज्य के बारे में जानेगे. इस आर्टिकल में हम जानेगे कि चोल साम्राज्य की स्थापना कैसे और किसने की थी. इसके साथ ही इसका अंत कब और किसने किया था. चोल वंश का शासन भारत के दक्षिण भाग में था. 9 वी शताब्दी से लेकर 13 वी शताब्दी तक चोल वंश के शासको ने दक्षिण भारत और इसके आस पास के क्षेत्रो में प्रभावशाली रूप से शासन किया था. चोल साम्राज्य इतिहास के सबसे शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य में से एक है. चोलो का उल्लेख प्राचीन काल से मिलता हैं. सम्राट अशोक के अभिलेखों में भी चोलो का उल्लेख प्राप्त होता हैं. लेकिन इन्होने संगमयुग में सबसे पहले इतिहास को प्रभावित किया था. इसके पश्चात् चोल वंश का उल्लेख प्राप्त नहीं होता हैं. फिर भी चोल वंश पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था. चोल वंश के शासक कूड़ाया जिला में पल्लवों, चालुक्यो और राष्ट्रकुटो के अधीन शासन करते थे. चोल साम्राज्य का संस्थापक का नाम विजयलाल था. विजयलाल पल्लवों का पहला सामंत था. उसने ई 850 में तंजौर में सर्वप्रथम कब्जा किया तथा वहा पर देवी दुर्गा के मंदिर का निर्माण कराया था. तंजौर पर अधिकार प्राप्त करने के पश्चात् उसे अपनी राजधानी बनाया तथा खुद को ‘नरकेसरी’ की उपाधि प्रदान की थी. विजयालय के निधन के बाद उसका पुत्र आदित्य 875 ई. में शासक बना. आदित्य ने अंतिम पल्लव शासक अपराजित वर्मन को हरा कर स्वन्त्रत चोल साम्राज्य की स्थापना की थी. अपने स्वन्त्रत राज्य की स्थापना करने के पश्चात् आदित्य ने खुद को ‘कोदंडराम’ की उपाधि प्रदान की थी. इसके पश्चात् परान्तक प्रथम ने चोल साम्राज्य की भागदौड संभाली. परान्तक प्रथम ने चोल साम्राज्य का विस्तार कन्याकुमारी तक फैलाया. इसके पश्चात् राजराज प्रथम चोल साम्राज्य के शासक बने. राजराज प्रथम चोल साम्राज्य के सबसे का प्रतापी शासक थे. उसने चेर शासक की नौ सेना को परास्त किया था. और खुद ‘कांडलूर शालैकलमरुत’ की उपाधि धारण की थी. इसप्रकार से समय समय पर अनेक राजाओ ने चोल साम्राज्य के शासन संभाला था. और राजेन्द्र तृतीय चोल साम्राज्य के अंतिम राज था. जिन्होंने सन 1279 ई तक शासन किया था.