महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुग़ल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया और उन्हें कई बार युद्ध मे भी हराया। वे बचपन से ही शूरवीरा, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया। यह देखते हुए अकबर नें कुल 4 बार अपने शांति दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा। राजा अकबर के शांति दूतों के नाम थे जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल।
महाराणा प्रताप जन्म और प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life of Maharana Pratapमहाराणा प्रताप का पूरा नाम राजा महाराणा प्रताप सिंह था। उनका जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को पिता राणा उदय सिंह (उदय सिंह द्वितीय) और माता महारानी जयवंता बाई के घर में हुआ। उनके 3 भी थे और 2 गोद ली हुई बहनें थी। उनके पिता उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के राजा थे जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी।
सन 1567 में, मुगल सेनाओं ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर आक्रमण करने की कोशिश की पर मुगल सेनाओं से लड़ने के बजाय, राणा उदय सिंह ने राजधानी छोड़ दिया और अपने परिवार को लेकर गोगुंदा चले गए।
हालाँकि, महाराणा प्रताप ने इस फैसले का विरोध किया और वापस रहने पर जोर दिया, लेकिन बुजुर्ग उन्हें समझाने में सक्षम थे कि जगह छोड़ना सही निर्णय था। उदय सिंह और उनके दरबारियों ने मेवाड़ राज्य की एक अस्थायी सरकार गोगुंदा में स्थापित की थी।
राणा उदय सिंह का निधन Death of Rana Uday Singhसन 1572 में, उदय सिंह के निधन के बाद, रानी धीर बाई ने ज़ोर देकर कहा कि उदय सिंह द्वितीय के बड़े बेटे, जगमाल को राजा के रूप में ताज पहनाया जाना चाहिए। लेकिन वरिष्ठ दरबारियों को लगा कि प्रताप मौजूदा स्थिति को संभालने के लिए बेहतर विकल्प हैं। इस प्रकार महाराणा प्रताप को अपने पिता को सिंहासन पर बैठाया गया।
महाराणा प्रताप का शासन Reign of Pratapजब महाराणा प्रताप को अपने पिता के सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमाल सिंह, ने बदला लेने के लिए मुगल सेना में शामिल हो कर बगावत कर दिया। मुगल राजा अकबर ने उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी और सहायता के कारण उसे जहज़पुर शहर की सल्तनत पुरस्कार के रूप मे दिया।
जब राजपूतों ने चित्तौड़ को छोड़ दिया, तो मुगलों ने जगह पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को वह अपने अधीन करने के उनके प्रयास असफल रहे। अकबर द्वारा कई दूत भेजे गए थे जिन्होंने एक गठबंधन पर प्रताप के साथ बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन कुछ काम नहीं आया।
1573 में छह राजनयिक मिशन अकबर द्वारा भेजे गए लेकिन महाराणा प्रताप द्वारा सब ठुकरा दिए गए। इन अभियानों में से अंतिम का नेतृत्व अकबर के बहनोई राजा मान सिंह ने किया था। जब शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के प्रयास विफल हो गए, तो अकबर ने अपनी शक्तिशाली मुगल सेना के साथ लड़ने की कोशिश करने का मन बना लिया।
मेवाड़ का हल्दीघटी युद्ध Battle of Haldighati in Mewar
हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून, 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था।
इस युद्ध में कुल 20000 महाराणा प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है। कई मुश्किलों का सामना करने के बाद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं माना और अपने पराक्रम को दर्शाया इसी कारण उनका पराक्रम और नाम इतहास के पन्नो पर चमक रहा है।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए थे। अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। महाराणा प्रताप के प्रिय बहादुर घोड़े चेतक की मृत्यु भी इस युद्ध के दौरान हुई।
निजी जीवन Personal Lifeउन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी। महाराणा प्रताप के सभी 11 पत्नियों के नाम थे – महारानी अज्बदे पुनवर, अमर्बाई राठौर, रत्नावातिबाई परमार, जसोबाई चौहान, फूल बाई राठौर, शाहमतिबाई हाडा, चम्पाबाई झाती, खीचर आशा बाई, अलाम्देबाई चौहान, लखाबाई, सोलान्खिनिपुर बाई।
इन सभी रानियों से महाराणा प्रताप के कुल 17 पुत्र हुए जिनके नाम थे – अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक Maharana Pratap’s Horse Chetak History in Hindi
चेतक महाराणा प्रताप का सबसे प्यारा और प्रसिद्ध घोडा था। उसने हल्धि घटी के युद्ध के दौरान अपने प्राणों को खो कर बुद्धिमानी, निडरता, स्वामिभक्ति और वीरता का परिचय दिया। चेतक की वह बात भी बहुत यादगार है जिसमे उसने मुगलों को पीछे आते देख महाराणा प्रताप की रक्षा करने के लिए बरसाती नाले को लांघते समय वीरगति की प्राप्ति हुई।
महाराणा प्रताप और अकबर Maharana Pratap and Akbar
सन 1579-1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे और दूसरी तरफ वीर महाराणा प्रताप भी एक के पश्चात एक गढ़ जीतते जा रहे थे और राजा अकबर भी इसके कारण पीछे हटते जा रहे थे और धीरे-धीरे मेवाडों पर मुगलों का दवाव हल्का पड़ता चले गया।
मुगलों को दबते देख सन 1585 में महाराणा प्रताप नें अपने प्रयत्नों को और भी सफल बनाया जब उन्होंने तुरंत ही आक्रमण कर उदयपूर के साथ-साथ 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
महाराणा प्रताप की मृत्यु Maharana Pratap’s Death
अपने अंतिम समय मे महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुविधाओं में जुट गए परन्तु 11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597, 56 वर्ष की उम्र में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु मुग़ल सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़ कर हुए घावों और चोटों के कारण हुई।
एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ गए।