उपरोक्त समझौते के बाद मीरकासिम और अंग्रेज मु’िरदाबाद गये और वहाँ मीरजाफर का राजमहल घेर कर उस पर यह दबाव डाला कि वह मीरकासिम को अपना नायब नियुक्त कर दे। मीरजाफर को यह भय था कि उसका दामाद मीरकासिम नायब बनने के बाद उसकी हत्या कर देगा। इसलिये मीरजाफर ने राजसिंहासन छोड़ना श्रेयस्कर समझा। फलत: मीरजाफर को गद्दी से उतारकर 15,000 रुपये मासिक पेशन देकर कलकत्ता भेज दिया और 20 अक्टूबर 1760 को ब्रिटिश कंपनी द्वारा मीरकासिम को नवाब बना दिया गया। मीरकासिम बंगाल के नवाबों में योग्य, बुद्धिमान, प्रतिभासम्पन्न और सच्चरित्र शासक था। नवाब बनने पर उसने अंग्रेजों को अपने वचन और समझौते के अनुसार बर्दवान, मिदनापुर और चटगाँव के जिले दिये। कलकत्ता कौंसिल के विभिन्न अंग्रेज सदस्यों तथा अन्य अंग्रेज अधिकारियों को उसने बहुत-सा धन भी भेटं तथा उपहार में दिया। दक्षिण भारत के युद्धों के संचालन के लिये उसने अंग्रेजों को पांच लाख रुपया देकर उसने अपना वचन पूरा किया। मीरकासिम के नवाब बनने पर उसके समक्ष अनेक समस्याएं थीं। अंग्रेजों को निरन्तर धन देते रहने से, अंग्रेजों को अनेक व्यापारिक सुविधाएँ देने से, कर्मचारियों के गबन से और अत्यधिक अपव्यय से राजकोश रिक्त हो गया था। प्रशासन अस्त-व्यस्त था। राजनीति व प्रशासन से अंग्रेजों का प्रभुत्व था। कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्ट और बेईमान थे। उन्होंने शासकीय धन का गबन किया था। रााज्य में भूमि-कर वसूल नहीं हो रहा था। जमींदारों में विद्रोही भावना बलवती हो रही थी। सेना अव्यवस्थित और अनुशासनहीन थी। मीरकासिम ने इन समस्याओं का दृढ़ता से सामना किया तथा अनके सुधार भी किये।