माना जाता है कि बक्सर का युद्ध निर्णायक युद्ध था। इस युद्ध ने प्लासी के युद्ध द्वारा प्रारम्भ किये अंगे्रजों के कार्य को पूर्ण कर दिया। बंगाल में राजनीतिक सत्ता और प्रभुत्व स्थापित करने का जो कार्य प्लासी के युद्ध द्वारा प्रारम्भ किया गया था, वह कार्य बक्सर के युद्ध ने पूर्ण कर दिया। प्लासी के युद्ध में विजयी होने पर अंग्रेज, व्यापारी से शासक बन गये थे। उनको बंगाल में राजनीतिक सत्ता और अधिकार प्राप्त हो गये थे। किन्तु बक्सर के युद्ध ने उनको बंगाल का ऐसा स्वामी बना दिया जिसे 1947 के पूर्व कोई नहीं हटा सका। अब बंगाल पर अंगे्रज कम्पनी का प्रत्यक्ष शासन स्थापित हो गया। बंगाल को कम्पनी के शासन में जकड़ दिया गया। बक्सर विजय के बाद अंगे्रज सेना ने आगे बढ़कर इलाहाबाद और चुनार पर भी अधिकार कर लिया। प्लासी का युद्ध वास्तव में युद्ध नहीं था। इसमें अंग्रेजों की विजय, रण-कुशलता, वीरता और साहस से नहीं हुई थी, पर शड़यंत्र, कुचक्र और कूटनीति से हुई थी। इसके विपरीत बक्सर का युद्ध भीषण संग्राम था जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक और अधिकारी रण-क्षेत्र में खेत रहे। यह विजय अंग्रेजों को उनकी सैनिक श्रेष्ठता, दृढ़ संगठन और कठोर अनुशासन से प्राप्त हुई थी। बक्सर के युद्ध ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय सेना का संगठन और रणनीति दूशित है। नवीन यूरोपीय ढंग की युद्ध प्रणाली अधिक श्रेष्ठ है। इस युद्ध के बाद अनेक भारतीय नरेशों ने अपनी सेना यूरोपीय ढंग से संगठित, प्रशिक्षित और अनुशासनबद्ध की। बक्सर युद्ध के राजनीतिक परिणाम और महत्व उसके सैनिक परिणामों से अधिक महत्व पूर्ण हैं। इस युद्ध में मीरकासिम के साथ अवध का नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाहआलम भी अंग्रेजों द्वारा परास्त किये गये। इससे अवध का नवाब शुजाउद्दौला आतंकित हो गया और परास्त होने पर कम्पनी के चरणों में आ गया और मुगल सम्राट भी कम्पनी के हाथों में चला गया। अब मुगल सम्राट अंग्रेजों की दया और सहायता पर निर्भर हो गया। वह अंगे्रजों से समझौता करने को तैयार था। अंग्रेजों ने उससे इलाहाबाद की संधि करके बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त की। इससे बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर अंग्रेजों का विधिवत अधिकार स्थापित हो गया। शाहआलम और शुजा की पराजय से अंग्रेजों के लिए कलकत्ता से दिल्ली तक की विजय का मार्ग खुल गया। अंग्रेज बंगाल के उत्तर-प’िचमी राज्यों के सम्पर्क में आ गये और वे उत्तरी भारत की और आकृष्ट हुए। अब मराठों से उनका संघर्ष प्रारम्भ हुआ और अतत: उनकी विजय हुई। इस प्रकार ब्रिटिश प्रभुत्व और प्रतिष्ठा की पताका शीघ्र ही उत्तर भारत में भी लहरा गई। अब बंगाल के नवाब की स्वतंत्रता सदा के लिये समाप्त हो गयी। मीरकासिम के साथ हुए संघर्ष ने अंग्रेजों को यह स्पष्ट कर दिया था कि बंगाल के नवाब के समस्त अधिकार समाप्त कर दिये जायें। फलत: अब बंगाल का नवाब अंग्रेजों की कठपुतली बन गया, अवध का नवाब अंग्रेजों पर आश्रित हो गया और मुगल सम्राट शाहआलम अंग्रेजों का पेंशनर बन गया। बक्सर विजय के बाद अंग्रेजों को वे सभी व्यापारिक अधिकार सुविधाएं पुन: प्राप्त हो गयीं जो मीरजाफर के समय उनको दी गयी थीं। अब कम्पनी द्वारा बंगाल का आर्थिक शोशण तीव्र गति से उत्तरोतर बढ़ने लगा। अंग्रेज प्रशासन और व्यापारिक एकाधिकार से बंगाल के भारतीय व्यापार, उद्योगें व्यवसाय और भूमिकर व्यवस्था को गहरा आघात लगा।