जन्म–कुंडय़ाम (वैशाली)
जन्म का वर्ष–527 ई०पू०
पिता–सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल)
माता–त्रिशला (लिच्छवी शासक चेटक की बहन)
पत्नी–यशोदा,
पुत्री–अनोज्जा प्रियदर्शिनी
भाई–नंदि वर्धन,
गृहत्याग–30 वर्ष की आयु में ( भाई की अनुमति से)
तपकाल–12 वर्ष
तपस्थल–जम्बीग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) में एक साल वृक्ष
कैवल्य–ज्ञान की प्राप्त 42 वर्ष की अवस्था में
निर्वाण–468 ई०पू० में 72 वर्ष की आयु में पावा में
धर्मोपदेश देने की अवधि–12 वर्ष
Verdhman Mahaveer History in hindi
महावीर का जन्म वैशाली के समीप कुण्डग्राम में 527 ई॰ पू॰ एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था, जो ज्ञात्रिक कुल के राजा तथा कुण्डग्राम के राजा थे । उनकी माता का नाम त्रिशला था, जो लिच्छवी वंश के राजा चेटक की बहिन थीं । राजपरिवार में उत्पन्न होने के कारण उनका प्रारम्भिक जीवन सुख-सुविधाओं से पूर्ण था
42 वर्ष की अवस्था में ज्ञान प्राप्त कर उन्होंने अपने जीवन का 30 वर्ष का समय धर्म-प्रचार में व्यतीत कर दिया । काशी, अंग, मगध, मिथिला, कौशल में प्राकर अपने धर्म का प्रचार किया । महावीर ने पावापुरी में जैनधर्म की स्थापना करने के बाद नालन्दा के घोषाल से मुलाकात की, जो एक महत्त्वपूर्ण घटना थी । 599 ई॰ पू॰ में वर्ष की आयु में पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया ।
जैन धर्म-दिगम्बर और श्वेताम्बर-दो सम्प्रदायों में अपनी विचारधारा के आधार पर बंट गया । दिगम्बर साधु दिशा को ही वस्त्र मानते हैं । वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं । जबकि श्वेताम्बर केवल श्वेत वस्त्र धारण करते हैं । जैनधर्म का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है ।
महावीर स्वामी ने जश्वीय ग्राम में ब्राहाणों के कर्मकाण्ड का तर्कपूर्ण खण्डन किया था । जिन ग्यारह ब्राह्मण याज्ञिकों को उन्होंने परास्त किया था, वे बाद में जैन धर्म में सम्मिलित हो गये । स्त्री और पुरुष दोनों ही उनके शिष्य थे ।
भिक्षु और भिक्षुणिओं को पांच महाव्रतों का पालन करना होता था और श्रावक-श्राविकाओं को अणुव्रत का पालन करना होता था । संन्यास ग्रहण करने के सरकार को निष्कमण सरकार कहते थे । यह संस्कार माता-पिता तथा किसी अभिभावक की अनुमति से ही सम्पन्न होता था ।
जीवों के रूप में, देवताओं के रूप में भी आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसी हुई है । इसी से छुटकारा पाकर कैवल्य पद प्राप्त किया जा सकता है तथा मोक्ष की प्राप्ति करना इसका ध्येय है । प्रत्येक आत्मा में अनन्त शक्ति होती है । जैन धर्म का मानवमात्र के लिए यह सन्देश है कि वह रचय की सहायता से पूर्णता को प्राप्त करें ।