क्वाइव के प्लासी पहुँचने के पूर्व ही सिराजुद्दौला अपने पचास सहस्र सैनिकों के साथ वहाँ विद्यमान था। जब युद्ध प्रारंभ हुआ तब सिराजुद्दौला की ओर से केवल मोहनलाल, मीरमर्दान और एक फ्रांसीसी अधिकारी थोड़ी सी सेना से अंग्रेजों से युद्ध कर रहे थे। नवाब की मुख्य सेना ने जो राय दुर्लभ और मीरजाफर के अधिकार में थी, युद्ध में भाग नहीं लिया। इन दोनों ने नवाब के साथ रण-क्षेत्र में भी धोखा किया। मीरमर्दान रण-क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुआ। अन्त में अंग्रेज विजयी हुए। उनकी विजय वीरता और रणकुशलता पर आधारित न होकर शड़यत्रं ो, धोखाधड़ी और विवासघात से परिपूर्ण थी। ‘‘प्लासी एक एसे ा व्यापार था जिसमें बंगाल के धनवान सेठों और मीरजाफर ने नवाब को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया था।’’ प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की पराजय का कारण उसकी सैनिक दुर्बलता नहीं थी, अपितु क्लाइव की धोखेबाजी, कूटनीति और शड़यंत्र था। प्लासी में वास्तविक युद्ध हुआ ही नहीं था। अपनी प्राण-रक्षा के लिए सिराजुद्दौला रण-क्षेत्र से भागा। किन्तु मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसे पकड़कर उसका वध कर दिया। सिराजुद्दौला में कितने भी दोष क्यों न रहे हों, किन्तु उसने अंगे्रेजों और अपने राज्य के साथ विश्वासघात नहीं किया।