Historical Sites of Ancient India : प्राचीन भारत के ऐतिहासिक पुरस्थलों के बारे में सभी अभ्यर्थियों के लिए आवश्यक है। विशेष रूप से प्रशासनिक पदों के लिए तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को। क्योकि हम जानते हैं कि राज्य व संघ लोकसेवा आयोगों में ऐतिहासिक पुरस्थलों के बारे में कई प्रश्न पूछे जाते हैं जोकि निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में सभी विद्यार्थी जानना चाहते हैं। 1. अतरंजीखेड़ा- (Ataranjikheda) अतरंजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश में एटा जनपद में स्थित) से गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति से लेकर गुप्त युग तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। अधिकांश अवशेष चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति से सम्बद्ध हैं। अतरंजीखेड़ा को उत्तर वैदिककालीन स्थल स्वीकार किया जाता है। यहाँ से 1,000 ई० पू० के लौह प्रयोग, धान की खेती, वृत्ताकार अग्निकुण्ड तथा कटे निशान वाले पशुओं की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं, उत्तरीकाली ओपदान मृद्भाण्ड संस्कृति के चरण में यहाँ नगर-संस्कृति के चिन्ह दृष्टिगत हुए हैं। इस प्रागैतिहासिक स्थल की खोज एलेक्जेण्डर कनिंघम ने की थी। 2. पाटलिपुत्र – Pataliputra पाटलिपुत्र (पटना) बिहार की राजधानी है। यहाँ महाजनपद युग से लेकर ब्रिटिश काल तक के ऐतिहासिक साक्ष्यों को संजोये हुए हैं। इसे कुसुमपुर अथवा पालिब्रोथा भी कहते हैं। पाटलिपुत्र को पाँचवी शताब्दी ई० पू० में उदयिन ने बसाया था। इसे भारत की प्रथम राजधानी होने का श्रेय प्राप्त है। मौर्य-पूर्व युग में यह नगर कालशोक तथा नन्दों की राजधानी था। यह भारत के समस्त व्यापारिक मार्गों व राजपथों से सम्बद्ध था। मौर्यो, शुंगों और कण्वों ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। शेरशाहसूरी ने सोलहवीं शताब्दी में इस नगर का पुनर्निर्माण कर उसे पटना नाम दिया था। मुगलों के काल में यह (पटना) बिहार प्रान्त की राजधानी थी। 3. मथुरा- उत्तर प्रदेश का जिला नगर मथुरा प्राचीन काल से व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण आर्थिक, राजनीतिक महत्व का ऐतिहासिक स्थल रहा है। महाजनपद युग से यह सूरसेनों की राजधानी थी; कुषाणों की पूर्वी प्रदेशों की राजधानी थी यहाँ से वैक्ट्रियाई यूनानी मिनेण्डर के सिक्के प्राप्त हुए हैं। मौर्योत्तर युग में यह मध्य एशिया से सम्बद्ध रेशम मार्ग से जुड़ा हुआ था। मथुरा में विकसित मथुरा काल को बुद्ध की प्रथम मूर्ति बनाने का श्रेय है। 4. उज्जैन- उज्जैन अथवा उज्जयिनी अथवा अवन्तिका के नाम से चर्चित रहा। यह नगर शिप्रा नदी के तट पर स्थित मध्य प्रदेश का जनपदीय नगर है। ‘पेरिप्लस’ में इसे ‘ओजीनी’ कहा गया है; इसके प्रसिद्धि के विवरण 708 ई० पू० से 11वीं शताब्दी ई० तक के प्राप्त हुए हैं। महाजनपद युग में यह अवन्ति के उत्तरी क्षेत्र की राजधानी रहा था। उज्जैन की प्रसिद्धि का कारण यहाँ लौह प्रचुरता थी। शिशुनाग ने इसे इसकी शक्ति व प्रसिद्धि के कारण अपने साम्राज्य (मगध) में विलीन कर लिया था। मौर्य काल में यह अवन्ति प्रान्त की राजधानी रहा था। अशोक ने उज्जैन में इसके सामयिक महत्व के कारण स्थानांतरण को चक्रवत प्रणाली अपनाई थी। मौर्योत्तर युग में यह अरव सागर के तटीय बन्दरगाह को उत्तर व पूर्वी भारत से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग का सर्वाधिक प्रसिद्ध केन्द्र स्थल था शुंगकाल में यह राजधानी का गौरव प्राप्त किए हुए था। उज्जैन रेशम मार्ग से सम्बद्ध था। उज्जैन में शक क्षत्रपों ने शासन संचालित किया था, बाद में यह गुप्त शासकों के अन्तर्गत सांस्कृतिक केन्द्र भी बना था। गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ ने इसे अपनी द्वितीय राजधानी होने का गौरव प्रदान किया। कालिदास ने उज्जयिनी की विशेष रूप से प्रशंसा की है तथा इसके वैभव का उल्लेख किया है। यहाँ का महाकालेश्वर शिव मन्दिर बहुत चर्चित रहा। जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अठारहवीं शताब्दी में जन्तर-मन्तर वेधशाला का निर्माण यहाँ कराया था। बौद्ध ग्रन्थों में इस नगरी को अच्युतगामी ‘ नाम से उल्लिखित किया गया है। महाभारत में यह नगरी ‘सान्दीपनि आश्रम’ के नाम से प्रसिद्ध थी। छठी शताब्दी ई० पू० में चण्ड प्रद्योत उज्जयिनी का प्रसिद्ध शासक रहा था। 5. सोमनाथ- गुजरात में प्रभासपट्टन नामक समुद्रतटीय क्षेत्र में स्थित सोमनाथ शिव मन्दिर के लिए चर्चित रहा था जिसका निर्माण चालुक्यों ने किया था; इस मन्दिर में अधिक धन संग्रह था तथा दस हजार गाँव अनुदान में मन्दिर को प्राप्त थे। 1025 ई० में महमूद गजनवी ने इस मन्दिर पर आक्रमण कर शिवलिंग व मन्दिर को तोड़ दिया था तथा अतुलनीय धन-सम्पत्ति लूट ले गया था।