महमूद गजनवी भारत पर अनेकों बार (लगभग 17 बार) आक्रमण किया तथा भारत से विपुल धन संपदा लूट कर ले गया। महमूद ग़जनवी के आक्रमण और महमूद के आक्रमण के भारत पर प्रभाव के बारे में हम पिछले लेखों में बात कर चुके हैं। जिसे आप नीचे दी गयी लिंक से जाकर पढ़ सकते हैं। यहां हम आज महमूद गजनवी द्वारा किया गया सोमनाथ मंदिर के आक्रमण को जानने का प्रयास करेंगे। क्योंकि उसके द्वारा किये गए 17 आक्रमणों में से सबसे प्रसिद्ध ही सोमनाथ मंदिर का आक्रमण ही था। आईये जानते हैं महमूद गजनवी का सोमनाथ पर आक्रमण को- सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण : 1025-26 महमूद का सबसे अधिक प्रसिद्ध आक्रमण (1025-26 ई.) में सोमनाथ के मंदिर पर हुआ। यह सुविख्यात शैव मंदिर, गुजरात में समुद्र तट पर स्थित था, जो अपनी अतुल रत्न और स्वर्ण के लिए प्रसिद्ध था। महमूद ने इस मंदिर को लूटने के उद्देश्य से 1025 ई. में मुल्तान और सिन्ध राजपूताना के मरुस्थल के मार्ग से गुजरात की ओर गया और मार्ग में छिटपुट विरोध का सामना करता हुआ सोमनाथ मंदिर के समीप 1026 ई. में पहुँच गया। कई दिन के घेरे के उपरान्त महमूद का गढ़ में प्रवेश हो गया और हजारों हिन्दुओं की हत्या कर दी और मंदिर को विध्वंस करा दिया तथा मूर्ति तोड़ दी गयी। लूट की सामग्री के साथ जब वह अपने सैनिकों सहित वापस लौट रहा था तब धार के राजा भोज ने उसका मार्ग रोककर उसे दण्ड देने की योजना बनाई महमूद को जब इसकी सूचना मिली तो वह कच्छ की खाड़ी के उथले पानी को मँझाकर उस पार चला गया और राजा भोज देखता रह गया। महमूद को अपनी इस लौटती यात्रा में अनेक कष्ट हुए। उसका बहुत सामान जाटों ने लूट लिया, बहुत से सैनिक तथा घोड़े-ऊँट मर गये और सुल्तान स्वयं थक गया। परन्तु गज़नी पहुँचने पर उसने जश्न मनाया। विदित हो कि पंजाब के बाहर (सोमनाथ पर आक्रमण) उसका अंतिम अभियान था। महमूद ने जाटों के विरुद्ध प्रतिशोध की भावना से 1027 ई. में अंतिम आक्रमण किया और उनकी बस्तियाँ जला दी, स्त्रियों और बच्चों को दास बना लिया। महमूद का बीमारी के कारण सन् 1030 ई. में गज़नी में मृत्यु हो गयी। महमूद को आक्रमणकारी और लुटेरा कहकर उपेक्षा करना अनुचित है। गज़नवी के पंजाब और मुल्तान के आक्रमण ने उत्तरी भारत की राजनीतिक स्थिति में आमूल परिवर्तन कर दिया। उत्तर-पश्चिम से भारत को सुरक्षा प्रदान करने वाली पर्वत श्रृंखलाओं को तुर्कों ने पार कर लिया था और वे गंगाघाटी की मध्यभूमि पर किसी भी समय गंभीर आक्रमण कर सकते थे। इस काल में भारत के अतिरिक्त मध्य एशिया में तीव्र गति से परिवर्तन होने के कारण तुर्क लोग 150 वर्षों से भी इस क्षेत्र में अपने आक्रमण कर विस्तार करने में असफल ही रहे। महमूद की मृत्यु के साथ-साथ सल्जूक नामक एक शक्तिशाली साम्राज्य अस्तित्व में के आया। जिसमें सीरिया, ईरान और मावरा उन्नहर सम्मिलित थे। इस साम्राज्य ने खुरासान पर आधिपत्य जमाने के लिए गज़नवियों से संघर्ष किया। जिसमें महमूद का पुत्र मसूद पराजित हुआ और उसने लाहौर में शरण ली गज़नी साम्राज्य अब गज़नी और पंजाब तक ही सीमित रह गया। फिर भी गज़नवियों ने गंगाघाटी के आक्रमण और लूटपाट का क्रम जारी रखा राजपूत लोग भारत पर होने वाले भारी सैनिक खतरे का सामने करने की स्थिति में नहीं थे। उत्तर भारत में एक ही समय में कुछ नये राज्यों का उदय हुआ, जो गज़नियों के आक्रमण का सामना कर सकते थे।