सूर्य एक गैसीय पिंड है. इसलिए इसकी संरचना पृथ्वी से भिन्न है. सूर्य में कोई ठोस सतह नहीं है. सूर्य में एक के बाद एक संकेंद्री गोलाकार कवच या परतें हैं. मुख्यतः सूर्य की बनावट को तीन परतों के रूप में समझा जाता है. हर परत में विशिष्ट प्रकार की भौतिक प्रक्रियाएं चलती रहती हैं. हालांकि सूर्य की सबसे आंतरिक परत कोर यानी केंद्र में नाभिकीय भट्टी सी अभिक्रियाएं चलती रहती हैं. सूर्य में द्रव्यमान के हिसाब से हाइड्रोजन की मात्रा लगभग 94 प्रतिशत और हीलियम की मात्रा 6 प्रतिशत है. कोर में चलने वाली प्रक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के अणु हीलियम के नाभिक में परिवर्तित होते रहते हैं जिसकी दर प्रति सेकण्ड 60 करोड़ लाख टन है. इस नाभिकीय प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न ऊर्जा विद्युतचुम्बकीय ऊर्जा के फोटॉनों के रूप में केंद्र के बाद ऊपर की ओर विकिरणी क्षेत्र में आती है. उसके बाद संवहनी क्षेत्र आता है फिर क्रमशः प्रकाश मंडल, वर्ण मंडल और संक्रमण क्षेत्र स्थित हैं. सूर्य के सबसे बाहरी क्षेत्र में आभामंडल यानी कोरोना स्थित होता है. हालांकि सूर्य का केंद्र ही अन्य सभी क्षेत्रों के लिए ऊर्जा का स्रोत होता है. केंद्र में प्रज्वलित नाभिकीय भट्ठी से ऊर्जा एक के बाद एक आने वाली बाहरी परतों में विकिरण एवं संवहन प्रक्रिया के माध्यम से पहुंचती है. सूर्य के केंद्र का तापमान 15×10″6 केल्विन होता है और बाहर की ओर बढ़ने पर तापमान में कमी आती जाती है. तापमान में कमी का सिलसिला वर्णमंडल आने तक चलता रहता है. वर्णमंडल में तापमान घटकर 4×10″3 केल्विन रह जाता है. ऊर्जा का प्रसार विकिरण के बजाय संवहन प्रक्रिया से उन क्षेत्रों में होता है जिनमें तापमान घट कर 2×10″6 केल्विन से कम रह जाता है. इन क्षेत्रों में विकिरण के बजाय संवहन ही ऊर्जा के प्रसार का प्रभावी माध्यम बन जाता है. ऊर्जा के प्रसार के आधार पर ही विकिरण क्षेत्र और संवहन क्षेत्र में विभेद किया जा सकता है. नंगी आंखों से देखी जा सकने वाली सूर्य की सबसे अंदरूनी परत प्रकाश मंडल है जो सूर्य के मुश्किल से दिखने वाले वायुमंडल की तुलना में अधिक चमकीला होता है. आमतौर पर हम नंगी आंखों से सूर्य के प्रकाश मंडल को देखकर ही उसके आकार का अनुमान लगाते हैं. सूर्य के प्रकाश मंडल के ठीक बाहर उसकी वायुमंडलीय परत होती है. प्रकाश मंडल की तीव्रता के कारण वर्णमंडल से उत्सर्जित दृश्य किरणें विशिष्ट फिल्टर के बिना देखने पर श्याम नजर आती हैं एवं खग्रास सूर्य ग्रहण की पूर्णता की स्थिति के दौरान चंद्रमा सूरज के प्रकाशमंडल को ढक लेता है. हालांकि सूर्य ग्रहण की पूर्णता की स्थिति से ठीक पहले वर्ण मंडल को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है. उस समय यह लाल रंग की क्षणिक दीप्ति में दिखाई देता है. इस लालप्रकाश का तरंगदैर्घ्य 656 नैनोमीटर होता है. इस लाल प्रकाश का उत्सर्जन हाइड्रोजन की परमाणु संरचना में परिवर्तन के कारण होता है. सूर्य के बाह्य वायुमंडल की संभवतः सबसे अनोखी विशेषता उसके तापमान का बेढंगा उतार-चढ़ाव है. केंद्र से दूरी बढ़ने के साथ ही सूर्य के वर्णमंडल तक जिस प्रकार से तापमान में क्रमिक गिरावट आनी चाहिए वैसी नहीं आती है. वर्णमंडल तक तो तापमान में क्रमिक रूप से गिरावट आती है लेकिन संक्रमण क्षेत्र में इसमें पुनः तेजी से वृद्धि हो जाती है. इसलिए तापमान में अचानक वृद्धि होने के कारण इस क्षेत्र को संक्रमण क्षेत्र कहा जाता है.